दिल्ली
जब भी चुनाव आते हैं सभी राजनैतिक दलों के अपने अपने एजेंडे तैयार हो जाते है और जनता को रिझाने और खुश करने में लग जाते हैं। राजधानी दिल्ली में चुनाव है और सभी राजनैतिक दल नई नई स्कीम और ऑफर्स के साथ जनता के बीच में है। पर दिल्ली के उन लाखों माध्यमवर्गीय परिवारों का कोई नहीं सोच रहा जो कार बंदी स्कैम की चपेट में आए हुए हैं।
जी है बीते 10 वर्षों से जो दिल्ली एनसीआर में 10 वर्ष पुरानी डीजल और 15 वर्ष पुरानी पैट्रोल की गाड़ियों को अवैध करार कर दिया है एनजीटी और सुप्रीम court के आदेश का हवाला दिया। पर वही एडवोकेट मुकेश कुलथिया बीते कई वर्षों से इसे देश के सबसे बड़े घोटालों में से एक बता रहे हैं जिसको लेके उन्होंने कई बड़े प्रशासनिक अधिकारियों को कोर्ट में भी घसीटा है। एडवोकेट मुकेश कुलथिया का दावा है कि साबित किया है और अब जनता को जागरूक भी करूंगा कि यह एक स्कैम है सबूत के साथ।
एडवोकेट मुकेश कुलथिया का साफ कहना है कि एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डरों का झूठा हवाला देकर ये किया जा रहा है। एडवोकेट कुल्थिया के अनुसार दिल्ली की राजनीति के अंदर चुनाव में ये मुद्दा होना चाहिए था आखिर लाखों लोग प्रभावित है इस स्कैम से पर दिल्ली में किसी नेता ने इस मुद्दे को अहम नहीं समझा।
अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली की जनता के लिए भी क्या यह मुद्दा नहीं है? क्या दिल्ली में रहने वाला माध्यम वर्ग का व्यक्ति जो पुरानी गाड़ी खरीद अपने सपने पूरे करने की सोचता है या जिन लोगों की गाड़ियों की स्थिति ठीक है उन्हें जबरन अपनी गाड़ी बेच देनी या कबाड़ में कटवा देनी कितना सही है? आखिर जनता इस मुद्दों को दिल्ली में चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बना पाई या किसी राजनेता ने इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया? ये बड़ा सवाल है।