जामिया स्टूडेंट्स और सीएए विरोधी समाजिक कार्यकर्ताओं की लगातार गिरफ्तारी चिंता का विषय है

*जामिया स्टूडेंट्स और सीएए विरोधी समाजिक कार्यकर्ताओं की लगातार गिरफ्तारी चिंता का विषय है*


01/05/2020  मो रिजवान


नई दिल्ली ---लॉक डाउन के उपरांत दिल्ली दंगे की जांच की आड़ में पुलिस द्वारा मुस्लिम अल्पसंख्यकों की लगातार गिरफ्तारी पर रोक लगाने से संबंधित जमीयत उलमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी के प्रार्थना पत्र पर 27 अप्रैल को  सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिए हैं कि जो गिरफ्तारी हुईं हैं या भविष्य में जो भी होंगी उस को अंजाम देते समय डीके बासु बनाम वेस्ट बंगाल सरकार 1977 मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से तय की गई गाइडलाइन का पूरा पालन किया जाए। जस्टिस सिद्धार्थ मरदुल, जस्टिस सिंह की दो सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है वह निचली अदालत में रेगुलर बेल, मुस्तकिल ज़मानत के लिए प्रार्थना पत्र दे सकते हैं। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 29 जून की तारीख निर्धारित की है।



स्पष्ट रहे कि जमीयत उलमा ए हिंद अपने वकील अनूप जार्ज चौधरी, जीवन चौधरी, एडवोकेट नियाज़ फारुकी और एडवोकेट तय्यब के सहयोग से हाईकोर्ट में 22 अप्रैल 2020 को एक प्रार्थना पत्र दायर किया था। जिसमें कहा गया है कि इस समय जबकि पूरा देश कोरोना वायरस की भयंकर महामारी से जंग लड़ रहा है। ऐसे में दिल्ली पुलिस फरवरी महीने में हुए सांप्रदायिक दंगे की आड़ में गली कूचे से मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार करके जेल भेज रही है। अदालत में जमीअत उलमा ए हिंद ने ऐसे 45 लोगों के नाम प्रस्तुत किए हैं जिनको इस बीच गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार होने वालों का संबंध ज़ाफराबाद, मुस्तफाबाद, ब्रह्मपुरी, चौहान बांगर, मोहनपुरी, उस्मानपुर, चांद बाग़ से है। दो विद्यार्थी मीरान हैदर और सफूर अजरगान जामिया मिलिया इस्लामिया के पीएचडी के विद्यार्थी हैं। प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि यह सब कुछ ऐसे समय में किया जा रहा है जबकि सम्मानीय सुप्रीम कोर्ट ने सु मोटो एक्शन लेते हुए सारे राज्यों को निर्देश दिए हैं कि पैरोल, बेल और फरलॉग के द्वारा कैदियों को रिहा किया जाए। और जेलों की भीड़ कम की जाए। इस तरह से दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मूलभूत आधार का उल्लंघन किया । और जेलों को खाली करने के बजाय उसे भरने का प्रयास किया। साथ ही दिल्ली सरकार के माध्यम से कैदियों से संबंधित नियमों में ‘इमरजेंसी पैरोल’ की बढ़ोतरी को भी ध्यान में नहीं लाया गया।


जमीयत उलमा ए हिंद ने अपने प्रार्थना पत्र में कहा है कि यह दुखद है कि एक सैकुलर समाज की पुलिस का चरित्र इस तरह ईर्ष्यालु , भेदभाव वाला और सांप्रदायिकता पर आधारित है। हालांकि एक ला इंफोर्समैंट एजेंसी के तौर पर उसका काम मानवता की सेवा, नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा और संविधान में दिए अधिकारों, आजादी व समानता का बिना भेदभाव सुरक्षा होना चाहिए। लेकिन अत्यधिक दुखद है कि दिल्ली दंगों में प्रभावित हुए लोगों विशेषकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिल्ली पुलिस का चरित्र अमानवीय और अन्याय पूर्ण रहा है। लोगों की गिरफ्तारी में किसी भी कानून और नियमों की कोई परवाह नहीं की गई। इस अवसर पर हाईकोर्ट ने पुलिस को डीके बसु बनाम स्टेट ऑफ़ वेस्ट बंगाल SCC416(1) 1977 मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करने के निर्देश दिए हैं। जो सुधार की तरफ बेहतरीन कदम है। इस गाइडलाइन में किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के समय 11 निर्देश दिए गए हैं। जिनका संक्षिप्त विवरण यह है कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के समय पुलिस कर्मियों की वर्दी पर साफ साफ शब्दों में नामों और पद का बिल्ला लगा होना चाहिए और इन पुलिस कर्मियों का समस्त विवरण एक रजिस्टर में रिकॉर्ड होना चाहिए। पुलिस कर्मियों के पास गिरफ्तारी का मेमो होना चाहिए। जिस पर एक गवाह का दस्तखत भी हो जो गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार का मेंबर (सदस्य) या क्षेत्र का गणमान्य व्यक्ति हो। मेमो पर गिरफ्तार होने वाले का भी दस्तखत हो और तारीख और समय दर्ज हो। जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा रहा है या पुलिस लॉकअप में रखा जा रहा है उस के सिलसिले में इसके किसी रिश्तेदार, मित्र या सहायक को शीघ्र से शीघ्र सूचित किया जाए। गिरफ्तार व्यक्ति के कैद का स्थान, गिरफ्तारी का समय नोटिफाइड किया जाए। जबकि इसके रिश्तेदार या दोस्त जिला से बाहर रहते हों तो जिले में मौजूद लीगल एड ऑर्गनाइजेशन के माध्यम से या इस क्षेत्र में मौजूद पुलिस स्टेशन के माध्यम से गिरफ्तारी के 8 से 12 घंटे के अंदर अंदर रिश्तेदारों को सूचित किया जाए। गिरफ्तार व्यक्ति को उसका यह अधिकार मालूम होना चाहिए कि वह अपनी गिरफ्तारी की सूचना किसी व्यक्ति को दे सकता है। गिरफ्तार व्यक्ति की हर 48 घंटे पर सरकारी तौर से स्वीकृत, प्रशिक्षित डॉक्टर के माध्यम से जांच कराई जाए। गिरफ्तार व्यक्ति को अपने वकील से मिलने की इजाजत दी जानी चाहिए। जिला और राज्य के केंद्र में एक पुलिस कंट्रोल रूम में क़ैदी की गिरफ्तारी और नोटिस बोर्ड पर उसका नाम दर्ज होना चाहिए। अगर इन चीजों का पालन नहीं होता है तो जिम्मेदार व्यक्ति के विरुद्ध दफ्तरी कार्रवाई की जाएगी।


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