गर्भवती पत्नी को 800 KM खींचकर पैदल लाया मजदूर, 17 दिन में किया पूरा सफर

*गर्भवती पत्नी को 800 KM खींचकर पैदल लाया मजदूर, 17 दिन में किया पूरा सफर*



13/05/2020 M RIZWAN 


 



प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की आफत उनके लिए बड़ी मुसीबत बन गई है। सेकड़ों-हजारों किमी का सफर वह पैदल कर रहे है। इसी बीच प्रवासी मजदूरों की घर वापसी बालाघाट का एक मजदूर जो कि हैदराबाद में नौकरी करता था, 800 किलोमीटर दूर से एक हाथ से बनी लकड़ी की गाड़ी में बैठा कर अपनी 8 माह की गर्भवती पत्नी के साथ अपनी 2 साल की बेटी को लेकर गाड़ी खींचता हुआ बालाघाट पहुंचा।


दरअसल लॉकडाउन (Lockdown) के कारण हैदराबाद में रामू को काम मिलना बंद हो गया था. ऐसे में उसके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। उसने मदद के लिए कई लोगों से मिन्नतें कीं, लेकिन किसी ने उसकी सहायता नहीं की। तब उसने पैदल ही हैदराबाद से अपने गृह जिले बालाघाट लौटने का निर्णय लिया। रामू अपनी पत्नी और दो साल की बेटी को लेकर सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़ा। गरीब रामू के पास मास्क खरीदने तक के पैसे नहीं थे। इसलिए वो, उसकी पत्नी और नन्हीं बेटी को बिना मास्क पहने इतना लंबा सफर तय करना पड़ा।



सफर के दौरान कुछ दूर तक रामू अपनी दो साल की बेटी को गोद में उठाकर चलता रहा और उसकी गर्भवती पत्नी सामान उठाकर। बेटी के पैरों में चप्पल नहीं थी। गर्भवती पत्नी और बेटी की हालत देख रामू ने दोनों को हाथ गाड़ी में बिठाया और उसे रस्सी से बांध दिया। इसके बाद रामू ने हाथ गाड़ी को खींचते हुए 800 किलोमीटर के सफर को 17 दिन में पैदल तय किया। जब वो बालाघाट की रजेगांव सीमा पर पहुंचे तो उनके संघर्ष को सुन वहां मौजूद पुलिसवालों का दिल पसीज गया। उन्होंने बच्ची को बिस्कुट और चप्पल लाकर दी। उन्होंने उन सभी की जांच कराई और एक निजी गाड़ी का बंदोबस्त करवा कर परिवार को उनके गांव तक भिजवाया।


लांजी के एसडीओपी नितेश भार्गव ने कहा, ”हमें बालाघाट की सीमा पर यह मजदूर मिला जो अपनी पत्नी धनवंती के साथ हैदराबाद से पैदल चला आ रहा था। साथ में 2 साल की मासूम बेटी भी थी जिसे वह हाथ की बनी गाड़ी में खींचकर यहां तक ले आया। हमने उसकी बेटी को चप्पल दी खाने की बिस्किट भी दिए और सीमा से लगे उसके गांव तक एक निजी गाड़ी से भेज दिया है।”


प्रवासी मजदूरों की तकलीफ देखते ही बनती है. रोजगार नहीं, खाने को जरिया नहीं, आने का साधन नहीं, ऐसे में कैसे भी घर पहुंच जाएं यह मजबूरी उन्हें सैकड़ों किलोमीटर सड़कें नापने मजबूर कर रही है।”


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