आत्मनिर्भर पैकेज: 20 लाख करोड़ के पैकेज से अडानी-अंबानी मालामाल, मिला ये फायदा
19/05/2020 मो रिजवान
भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार अडानी और अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों को कुछ ज्यादा ही आत्मनिर्भर बना रही है, या यूं कहें उन्हें ज़बरदस्त फायदा पहुंचा रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राहत पैकेज से जुड़े चौथे प्रेस कांफ्रेंस में इसकी जानकारी दी है। उन्होनें बताया कि बिजली कंपनियों से लेकर कोल इंडिया की खदानें प्राइवेट हाथों में दी जाएंगी। अर्थव्यवस्था को गिरने से बचाने के नाम पर सरकार कई उद्योग घरानों को लाभ पहुंचाने वाली है।
6 एयरपोर्टों की नीलामी
एक तरफ मज़दूरों का पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा तो दूसरी तरफ सरकार अंबानी, अडानी, टाटा पावर, जेएसडब्ल्यू स्टील और वेदांता जैसे उद्योपतियों को ज़बरदस्त फायदा पहुंचा रही है. वैसे तो इस मोदी सरकार में निजीकरण होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कोरोना के बहाने ये फिरसे दोहराया जा रहा है.
वित्त मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि 6 और एयरपोर्टों की नीलामी होगी. इससे पहले भी 6 एयरपोर्टों की नीलामी हो चुकी है, मतलब कुल मिलाकर 12 हो जाएंगे। ध्यान देने वाली बात है कि उन्होनें ये भी कहा है कि इनमें से कुछ परियोजनाएं लंबे वक़्त के लिए हैं और इससे कोरोना संकट में मदद मिलने की संभावना नहीं है. फिर रहत पैकेज में ही इस नीलामी की घोषणा करने की क्या ज़रूरत थी?
कोल कंपनियों का निजीकरण
खनन (माइनिंग) को बढ़ाने के लिए सरकार कोल इंडिया लिमिटेड को बेहतर नहीं बना रही बल्कि उसी का निजीकरण कर रही है. आपको बता दें कि 50 ऐसे नए ब्लॉक नीलामी के लिए उपलब्ध होंगे. कोल खदानों की नीलामी को क्लब करके सरकार 500 माइनिंग ब्लॉक की नीलामी करेगी जिससे वेदांता एल्युमीनियम जैसी कंपनियों को फायदा होगा. देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार हर तरिके से निजीकरण का सहारा ले रही है.
उद्योगपतियों के लिए निजीकरण और मज़दूरों के लिए पैदल सफर
कोल खदानों और एयरपोर्टों की नीलामी के अतिरिक्त सरकार केंद्र शासित राज्यों में बिजली कंपनियों का निजीकरण भी करेगी. इस निजीकरण के चलते अडानी और टाटा पावर को बड़ा फायदा पहुँच सकता है. सरकार ने रक्षा उत्पादन में आने वाले FDI की लिमिट 49 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत कर दी है.
अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए सरकारी कंपनियों का निजीकरण करके सरकार उद्योपतियों को फायदा पहुंचा रही है. और दूसरी तरफ श्रम कानूनों को एक तरह से खत्म करके मज़दूरों के शोषण पर मौहर लगा रही है. इसमें ओडिसा और राजस्थान जैसी राज्य सरकारें भी शामिल हैं. सवाल ये है कि गरीबों का बेटा कह देने से, या उनके नाम पर वोट मांगने से क्या समस्या का समाधान हो जाएगा? अगर सरकार के फैसले इसी तरह उद्योगपतियों के पक्ष में आते रहे और मज़दूरों के अधिकारों को छीनते रहे, तो उनके पलायन को रोका नहीं जा सकेगा. फिर इन बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम कौन करेगा?