निजामुद्दीन की घटना के बाद कोरोना गया तेल लेने, मीडिया ने फैलाना शुरू किया नफरत का वायरस
01/04/2020 M RIZWAN
चैनलों और सोशल मीडिया ने कोरोना को कर दिया है हिंदू-मुसलमान में तब्दील, लोगों को रोग की जगह अब नजर आ रही है सांप्रदायिकता…
दिल्ली। दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में कोरोना वायरस संक्रमण पर बहस नहीं हो रही है। न ही यह सवाल उठाये जा रहे हैं कि जब हजारों की संख्या में भीड़ यहां जमा थी तो सरकार ने क्यों इस पर ध्यान दिया। विदेश से कैसे लोग यहां तक पहुंच गये। सरकार की इस विफलता पर कोई बात नहीं हो रही है।
सोशल मीडिया पर सक्रिय एक वर्ग विशेष ने पूरी बहस को एक बार फिर से हिंदू मुस्लिम रंग दे दिया है और टीवी चैनलों ने इस पर तड़का लगाने का काम किया है। सोशल मीडिया पर चल रही बहस का रंग ही पूरी तरह से बदल गया है। वर्ग विशेष जो चाहता था, उसके मुताबिक ही हो रहा है और कोरोना भी हिंदू—मुस्लिम में तब्दील होता नजर आ रहा है।
सोशल मीडिया पर जमात के लोगों को कहीं कोरोना जिहादी तो कहीं वायरस फैलाने वाले करार दिया जा रहा है। ट्वीटर पर तो हेशटैग कोरोना जेहादी बहस चल रही है।
यही नहीं निजामुद्दीन की घटना के बाद चैनलों में कोरोना का खौफ़ बहुत कम हो गया है। अब ज्यादातर टीवी चैनल नफरत के वायरस से खूब टीआरपी ले रहे हैं।
सोशल मीडिया पर तो इस तरह का भी दावा किया जा रहा है कि यह वायरस बम है, जो यहां से संक्रमित हो देश के अलग अलग हिस्सों में कोरोना को फैलाने वाले थे। इस तरह के संदेश लिखने वाले दावा कर रहे हैं कि यह सब एक रणनीति के तहत किया जा रहा था। पूजा नाम के यूजर ने दावा किया कि तबलीगी जमात एक आतंकवादी संगठन है। ये 2008 में स्पेन में बेरिसोलोना में बम प्लांट करने की कोशिश में पकड़े गए थे।
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने इस पर बहुत ही सटीक टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि तबलीगी जमात की लापरवाही से कोरोना का खतरा बहुत बढ़ गया है। इतनी पाबंदियों और चेतावनी के बाद भी किसी भी दुनिया भर से आये लोगों का मजमा लगाए रखना भयंकर लापरवाही है, लेकिन यह ट्रेंड करना गलत है कि ये कोरोना जिहादी है। इस पूरे मामले की सख्त जांच हो और लापरवाही की जिम्मेदारी तय हो। वह चाहे आयोजक हों या सरकारी अमला…लेकिन इसे हिन्दू-मुसलमान का मामला बनाने की कोशिश साम्प्रदायिक सोच का नतीजा है। कोरोना जिहाद कहकर इस अपराध को सांप्रदायिक एंगल देना गलत है।
मगर सोशल मीडिया पर अजीत अंजुम जैसी सोच रखने वाले बहुत कम है। सोशल साइंस के प्रोफेसर अनिरुद्ध कुमार कहते हैं, एक बड़ा वर्ग बड़ी समस्या से जनता का ध्यान हटाने के लिए सोशल मीडिया को बहुत ही सोच समझ कर इस्तेमाल कर रहा है। जब एक साथ एक जैसे मैसेज सोशल मीडिया पर आते हैं, तो यह देखने वाले की सोच को भी प्रभावित करते हैं। ऐसा करने वालों का उद्देश्य भी यही है। वह यही चाहते हैं कि जनता का ध्यान कैसे दूसरी तरफ लगाया जाये। वह बहुत ही चालाकी से इस तरह का झूठ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर फैला देते हैं कि सामान्य यूजर इनके भ्रमजाल में फंस जाता है।
जानकार कहते हैं क्योंकि अब देश में केंद्र सरकार की आलोचना हो रही है कि कोरोना वायरस पीड़ितों का इलाज कर रहे डॉक्टरों के पास बचाव के इंतजाम नहीं है, उनके पास सुरक्षा उपकरणों का अभाव है। इस तरह से सीधे सीधे केंद्र सरकार निशाने पर आती है। जनता को सच मालूम न पड़े, इसलिए बहुत ही चालाकी से निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया है।
प्रोफेसर कुमार कहते हैं, यह पहली बार नहीं बल्कि हर बार हो रहा है। जब भी केंद्र सरकार किसी मुद्दे को लेकर निशाने पर आती है, बड़ी तेजी से सोशल मीडिया पर हिंदू मुसलमान के मसले को उछाल दिया जाता है। यह बहुत ही सोची—समझी कोशिश है। अब जबकि पूरा देश कोरोना वायरस से डरा हुआ है। देश लॉकडाउन में है, लोग डरे हुए हैं। ऐसे माहौल को सांप्रदायिक रंग देना आसान है। यह लोग अब इसी कोशिश में जुटे हुए हैं।
जानकार कहते हैं कि इस काम में मीडिया का एक बड़ा वर्ग खासकर चैनल भी उन्हीं का साथ देते नजर आ रहे हैं। यानी इसे पूरी तरह सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं। वहां से भी इस तरह की खबरें और बहस आयोजित होती हैं, जो सांप्रदायिकता फैलाने वालों को सपोर्ट करती है।
ऐसे मौके पर यदि इस तरह की कोशिश को नहीं रोका गया तो समाज में बहुत बड़ी दिक्कत आ सकती है, क्योंकि तब यह भी हो सकता है कि लोग एक दूसरे के विरोध में ही खड़े न हो जायें।
इस दौरान ऐसी भी रिपोर्टें आ रही हैं कि कोरोना वायरस से संक्रमित के शक में बाहर से आए लोगों को गांवों में घुसने नहीं दिया जा रहा है, उनके साथ लिंचिंग जैसी नौबत आ रही है। जाहिर है लोग डरे हुए हैं। ऐसे में एक छोटी सी गलत जानकारी या भ्रम में डालने वाली बात भी लोगों के इस डर को हिंसा में तब्दील कर सकती है।