*आशू यादव की कलम कानपुर से खास रिपोर्ट उत्तर प्रदेश ऑल इंडिया रिपोर्ट।*
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*नई दिल्ली, जेएनएन। बीते शुक्रवार को आठ बजने का पूरा देश इंतजार कर रहा था। लोगों के दिलोदिमाग में आशंका और उम्मीद दोनों के संयुक्त भाव तैर रहे थे। पूर्व में आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का टीवी पर आकर देश को संबोधित करने की बात उसके संज्ञान में थी। कोरोना महामारी के बीच प्रधानमंत्री ने शुक्रवार रात आठ बजे 29 मिनट तक देश को संबोधित किया और लोगों से उनका समय मांगा। प्यारे देशवासियों, मुझे एक दिन का आपका समय चाहिए। उनकी इस सहज इच्छा का मर्म उस समय भले ही किसी की समझ में न आया हो, लेकिन पूरे देश का एक दिन के लिए घर में बंद हो जाने की अभूतपूर्व प्रक्रिया (जनता कर्फ्यू) कोरोना वायरस के संक्रमण की कड़ी की अहम काट बनने की उम्मीद लगाई जा रही है। दुनिया के वैज्ञानिक और शोधकर्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस अनोखे विचार पर हैरान हैं। अब प्रधानमंत्री मोदी के इस आह्वान को कई राज्यों ने 31 मई तक बढ़ा दिया है। राज्यों का यह कदम कोरोना की कमर तोड़ने में बहुत प्रभावशाली रहने की संभावना है।*
*12 घंटे का अहम चक्र*
*कई वैज्ञानिक शोध मानते हैं कि कोरोना वायरस किसी भी सतह पर 12 घंटे से अधिक जीवित या सक्रिय नहीं रह सकता है। ऐसे में जनता कफ्र्यू के माध्यम से पूरे देश को दुनिया से एक दिन के लिए आइसोलेट (अलग-थलग) करना इस वायरस से नए संक्रमण को रोकने में रामबाण साबित हो सकता है। एक दिन के इस कफ्र्यू के बीच रोजमर्रा के इस्तेमाल किए जाने वाली चीजों (दरवाजे के हत्थे, करेंसी नोट, फाइलों, कूरियर पार्सलों, वाहनों के स्टीयरिंग व्हील आदि ) पर मौजूद वायरस नए लोगों को संक्रमित करने से पहले ही दम तोड़ देने का अनुमान लगाया जा रहा है। इससे नए लोगों में इन चीजों को छूकर होने वाले संक्रमण की कड़ी तोड़ने में मदद मिलेगी। वायरस से होने वाले संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यह बहुत कारगर तरीका साबित हो सकता है। चूंकि रविवार के दिन इसे आजमाया गया तो इससे देश को होने वाली आर्थिक चपत भी कामकाजी दिनों की तुलना में कम हुई होगी।*
*गर्मी की गर्मजोशी*
*कोरोना वायरस के इस एकदम नए स्ट्रेन की कार्यप्रणाली को लेकर अभी बहुत अध्ययन नहीं हो पाए हैं। चूंकि नोवेल कोरोना का सीजनल पैटर्न 2003 में फैले सार्स या सीओवीपी9 वायरस से बहुत हद तक मिलता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर का अध्ययन बताता है कि चीन और अमेरिका में फ्लू का सीजन दिसंबर में शुरू होता है और जनवरी या फरवरी में शीर्ष पर होता है। इसके बाद यह खत्म होने लगता है। सार्स कोरोना वायरस स्ट्रेन भी उत्तरी गोलार्द्ध से 2003 की गर्मियों में समाप्त हो गया था। जिसके बाद इसका उल्लेखनीय असर नहीं दिखा। रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य सर्दी जुकाम फैलाने वाला कोरोना वायरस 20 डिग्री तापमान और उच्च आर्द्रता वाले स्थान की तुलना में 6 डिग्री सेल्सियस तापमान में 30 गुना ज्यादा जीवित रहता है। अन्य शोध भी कहते हैं कि कम तापमान सार्स के वायरस को लंबा जीवन देता है।*
*जीत की 30 डिग्री*
*जर्नल ऑफ हॉस्पिटल इंफेक्शन में प्रकाशित एक शोध बताता है कि कमरे के तापमान में किसी निर्जीव सतह पर मानव कोरोना वायरस नौ दिनों तक सक्रिय रह सकता है, लेकिन अगर तापमान 30 डिग्री से ज्यादा हो तो इसके जीवित रहने की अवधि उल्लेखनीय रूप से घट जाती है। कमोबेश पूरे भारत का तापमान जनता कफ्र्यू के दौरान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा। ऐसे में रोजमर्रा में इस्तेमाल आने वाली तमाम सतहों पर मौजूद बड़ी संख्या में वायरसों के इस अवधि में स्वत: निष्क्रिय हो जाने का अनुमान है।*
*घटती है संक्रमण क्षमता*
*अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर बॉयोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (एनसीबीआइ) का एक अध्ययन बताता है कि सार्स कोरोना वायरस चार डिग्री सेल्सियस तापमान पर स्थिर रहता है। कमरे के तापमान या 37 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर यह दो घंटे स्थिर रहता है, लेकिन अगर इसे 56, 67 और 75 डिग्री सेल्सियस तापमान में क्रमश: 90, 60 और 30 मिनट रहना पड़े तो यह अपनी संक्रमण फैलाने की क्षमता खो देता है।*
*शुरुआत अच्छी निरंतरता जरूरी*
*एक दिन के जनता कफ्र्यू के प्रभावशाली नतीजों ने दुनिया को दिखा दिया कि हम भारतीय संकट की घड़ी में कितने एकजुट, संयमित और संकल्पित हैं। कोरोना के पूर्णत: खात्मे के लिए निरंतरता जरूरी है। हमें धैर्य के साथ सरकारों और विशेषज्ञों के बताए दिशानिर्देशों का पालन करने की जरूरत है। डरने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।*