नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2018 की रिपोर्ट के तहत 1 साल में 34,000 बलात्कार।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर 15 मिनट में हो रहा था एक बलात्कार।
जहां देश की सरकारें व नेता महिला सुरक्षा महिला एंपावरमेंट की बात करते हैं वही सरकार द्वारा जारी की गई रिपोर्ट ने होश उड़ा दिए हैं।
एन.सी.आर.बी 2018 की रिपोर्ट के तहत 34000 बलात्कार हुए हैं, इन बलात्कारों में 85% महिलाओं ने रिपोर्ट दर्ज करवाई है और केवल 27% मामलो में ही सजा दी गई है।
यह आंकड़े सरकार द्वारा साझा किए गए हैं और ऐसे कई हजार बलात्कार के अपराध हुए हैं जिनकी रिपोर्ट नहीं की जाती है।
इस सबके चलते 2012 की एक घटना जिसमें बस के अंदर एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था इस बलात्कार के विरोध में हजारों लाखों की तादाद में जनसैलाब सड़कों पर उमड़ा था, देश के बड़े-बड़े राजनेता अभिनेता और अन्य लोगों ने इसका विरोध किया था। लेकिन आज भी 2018 की रिपोर्ट चौका देने वाली है जहां हर 15 मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार किया जा रहा है।
महिला अधिकार संगठनों की माने तो उनका कहना है पुलिस प्रणाली बलात्कार के केस में बहुत ढिलाई बरती है और इन अपराधों की इन्वेस्टिगेशन में भी लापरवाही बरती जाती है। महिला अधिकार संगठनों का कहना है कि देश में पुरुष प्रणाली ही चल रही है। ललिता कुमार मंगलम पूर्व प्रमुख नेशनल कमिशन ऑफ वूमेन ने कहा की एक इंदिरा गांधी सब कुछ नहीं बदल सकती है हर जगह ज्यादातर जो जज है वह पुरुष ही पाए जाते हैं। हमारे देश में फॉरेंसिक लैब बहुत कम है और फास्ट ट्रैक अदालतों में जजों की संख्या बहुत कम है। ललिता कुमार मंगलम ने उदाहरण देते हुए बीजेपी के विधायक रहे कुलदीप सेंगर का उदाहरण दिया जिसने 2017 में एक लड़की के साथ बलात्कार किया और 2019 में उसे सजा मिली, ललिता का मानना है की जो दंड देने की प्रक्रिया में बहुत ज्यादा समय लग जाता है। अगर औसत देखा जाए तो साडे 8 महीने किसी भी बलात्कार के एक केस में लग जाते हैं।
2015 में बेंगलुरु में फास्ट ट्रैक कोर्ट बहुत तीव्र गति से काम कर रहा था उसके बावजूद बलात्कार के अधिकतम केस लेने में असमर्थ रहा।